
वैज्ञानिकों ने एक ऐसी ध्वनि तकनीक विकसित की है जो हवा में मुड़कर सीधे किसी खास व्यक्ति के कानों तक पहुँच सकती है। जानिए कैसे काम करती है यह अद्भुत टारगेटेड साउंड प्रणाली और इसके संभावित उपयोग। Audible enclaves
वैज्ञानिकों ने अल्ट्रासाउंड किरणों का उपयोग करके “श्रव्य एन्क्लेव” विकसित किया है , जिससे ऐसी ध्वनि उत्पन्न की जा सकती है जो भीड़ के बीच से होकर गुजर सकती है और किसी विशिष्ट व्यक्ति को लक्ष्य कर सकती है, जिससे दूसरों को परेशान किए बिना व्यक्तिगत ऑडियो की अनुमति मिलती है।
- द टेक्नोलॉजी:पेन स्टेट के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जो “श्रव्य एन्क्लेव” बनाने के लिए प्रतिच्छेदित अल्ट्रासाउंड किरणों का उपयोग करती है।
- अल्ट्रासाउंड तरंगों के चरण को सटीक रूप से नियंत्रित करके, ध्वनि को मोड़ा जा सकता है और एक विशिष्ट स्थान की ओर निर्देशित किया जा सकता है।
- ध्वनि तरंगें जब अपने लक्ष्य स्थान पर पहुंचती हैं तभी वे श्रव्य ध्वनि में परिवर्तित होती हैं।
- अल्ट्रासाउंड तरंगों के चरण को सटीक रूप से नियंत्रित करके, ध्वनि को मोड़ा जा सकता है और एक विशिष्ट स्थान की ओर निर्देशित किया जा सकता है।
- फ़ायदे:
- यह तकनीक सार्वजनिक स्थानों पर हेडफोन की आवश्यकता के बिना या दूसरों को परेशान किए बिना व्यक्तिगत ऑडियो की अनुमति देती है।
- यह भीड़-भाड़ वाले क्षेत्रों में लक्षित घोषणाएं या सार्वजनिक स्थानों पर निजी ऑडियो अनुभव जैसे अनुप्रयोगों को सक्षम कर सकता है।
- यह तकनीक सार्वजनिक स्थानों पर हेडफोन की आवश्यकता के बिना या दूसरों को परेशान किए बिना व्यक्तिगत ऑडियो की अनुमति देती है।
- महत्वपूर्ण अवधारणाएं:
- श्रव्य एन्क्लेव: अपने परिवेश से पृथक ध्वनि के क्षेत्र जिन्हें किसी विशिष्ट स्थान पर लक्षित किया जा सकता है।
- अल्ट्रासाउंड: मानव श्रवण सीमा से ऊपर आवृत्तियों वाली ध्वनि तरंगें।
- अरेखीय ध्वनिकी: यह अध्ययन इस बात का है कि ध्वनि तरंगें एक दूसरे के साथ गैर-रैखिक तरीके से किस प्रकार अंतःक्रिया करती हैं, जिससे जटिल हेरफेर संभव हो पाता है।
- श्रव्य एन्क्लेव: अपने परिवेश से पृथक ध्वनि के क्षेत्र जिन्हें किसी विशिष्ट स्थान पर लक्षित किया जा सकता है।
- अनुसंधान:
- ये निष्कर्ष जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुए।
- पेन स्टेट के ध्वनिकी शोधकर्ता और प्रमुख लेखक जियाक्सिन झोंग ने इस तकनीक को “एक आभासी हेडसेट” बनाने वाली तकनीक बताया।
- सह-लेखक यूं जिंग, जो पेन स्टेट में ध्वनिकी के प्रोफेसर हैं, ने बताया कि ध्वनि तरंगें, विशेषकर निम्न आवृत्तियों पर, यात्रा करते समय विवर्तित या फैल जाती हैं, जिससे उन्हें रोकना कठिन हो जाता है, और यह प्रौद्योगिकी उस समस्या का समाधान करती है।
- ये निष्कर्ष जर्नल प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुए।
1.ध्वनि की नई क्रांति: सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित रहेगी आवाज़!
विज्ञान ने एक बार फिर असंभव को संभव कर दिखाया है। दुनिया भर के शोधकर्ताओं ने एक ऐसी अत्याधुनिक ध्वनि तकनीक विकसित की है जो हवा में मुड़कर या वातावरण के अनुसार अपना रास्ता बदलकर सीधे किसी विशेष व्यक्ति के कानों तक पहुँच सकती है। यह तकनीक, जिसे ‘टारगेटेड साउंड’ या ‘डायरेक्टेड ऑडियो’ कहा जा रहा है, सार्वजनिक स्थानों पर शोर-शराबे के बीच भी किसी एक व्यक्ति से सीधा संवाद करने में सक्षम है। मान लीजिए, भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशन पर सिर्फ आपको कोई संदेश सुनाई दे—यह तकनीक ऐसा ही करने का दावा करती है!
🚨V2K | Voice to Skull Technology🚨
Professor demonstrates how an audible signal can be silently beamed into the skull using an Ultrasonic Acoustic Heyerodyne device.
Imagine how easy it is to drive someone to madness or to committ heinous crimes when you can beam voices or… pic.twitter.com/Cg4SUcJ0tz
— E M M A ✨ K A T H E R I N E (@TheEmmapreneur) December 23, 2024
2.क्या है यह टारगेटेड साउंड तकनीक?
इस तकनीक का मूल सिद्धांत अल्ट्रासोनिक तरंगों (Ultrasonic Waves) और बीमफॉर्मिंग (Beamforming) पर आधारित है। सामान्य स्पीकर से निकलने वाली ध्वनि तरंगें चारों दिशाओं में फैलती हैं, लेकिन टारगेटेड साउंड सिस्टम में अल्ट्रासोनिक फ्रीक्वेंसी की मदद से ध्वनि को एक संकीर्ण बीम के रूप में केंद्रित किया जाता है। यह बीम हवा में मौजूद नमी या अन्य कणों से टकराकर वापस सामान्य ध्वनि में बदल जाती है, लेकिन सिर्फ उसी जगह पर जहाँ लक्षित व्यक्ति खड़ा होता है। ठीक वैसे ही जैसे टॉर्च की रोशनी को एक बिंदु पर फोकस किया जाता है!
3.कैसे काम करती है यह अद्भुत प्रणाली?
- अल्ट्रासोनिक बीम जनरेशन: डिवाइस अल्ट्रासोनिक फ्रीक्वेंसी (20 kHz से ऊपर) की तरंगें पैदा करती है, जो मानव कानों को सुनाई नहीं देतीं।
- मॉड्युलेशन: इन तरंगों पर वांछित ध्वनि (जैसे संदेश या संगीत) को सुपरइम्पोज़ किया जाता है।
- टारगेटिंग: बीमफॉर्मिंग तकनीक से ध्वनि को एक विशिष्ट दिशा में भेजा जाता है।
- डिकोडिंग: हवा में मौजूद कणों से टकराने के बाद अल्ट्रासोनिक तरंगें सामान्य ध्वनि में बदल जाती हैं, जो सिर्फ लक्षित स्थान पर सुनाई देती हैं।
इस प्रक्रिया में AI का भी उपयोग किया जाता है ताकि ध्वनि बाधाओं को पार करते हुए सही व्यक्ति तक पहुँच सके।
💡 Idea: Visual -> audio channel.
Project world distances to nearest surface on player sphere to create a 360 collision grid (interpolate -> smooth field). This data can be used to generate a fully 3D, realtime soundscape.
You can “hear” collisions like a sonar/pressure field. pic.twitter.com/69RgFMHhR4
— Mirza Beig (@TheMirzaBeig) August 13, 2024
4.टारगेटेड साउंड के उपयोग: कहाँ-कहाँ बदलाव आएगा?
- सैन्य क्षेत्र: युद्धक्षेत्र में सैनिकों को चुपके से निर्देश भेजना।
- व्यक्तिगत विज्ञापन: मॉल में ग्राहकों को उनकी पसंद के अनुसार ऑफर की जानकारी देना।
- सार्वजनिक सुरक्षा: भीड़ में किसी व्यक्ति को चोरी या खतरे की चेतावनी देना।
- चिकित्सा: बहरों को सीधे कानों में ध्वनि पहुँचाने वाले उपकरण।
- संग्रहालय और प्रदर्शनियाँ: पर्यटकों को उनकी भाषा में ऑडियो गाइड सुनाना।
5.क्यों है यह तकनीक गेम-चेंजर?
- प्राइवेसी: बिना किसी को बताए सिर्फ लक्षित व्यक्ति तक संदेश पहुँचाना।
- शोर कम करना: सार्वजनिक स्थानों पर अनावश्यक ध्वनि प्रदूषण में कमी।
- ऊर्जा दक्षता: ध्वनि को फोकस करने से ऊर्जा की बचत।
चुनौतियाँ और विवाद
हालाँकि यह तकनीक क्रांतिकारी है, लेकिन इसके कुछ पहलू चिंता का कारण भी बन रहे हैं:
- गोपनीयता का खतरा: किसी को भी बिना इजाजत उनके कानों तक संदेश भेजना नैतिक नहीं।
- तकनीकी सीमाएँ: हवा की गुणवत्ता या नमी का प्रभाव।
- लागत: फिलहाल, यह सिस्टम महंगा है और इसे आम लोगों तक पहुँचाने में समय लगेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन चुनौतियों पर काम चल रहा है और भविष्य में यह तकनीक और परिष्कृत होगी।
भविष्य की संभावनाएँ
विशेषज्ञों के अनुसार, अगले दशक तक यह तकनीक स्मार्ट सिटीज, रिटेल स्टोर्स और स्वास्थ्य सेवाओं का हिस्सा बन सकती है। होलोग्राफिक कम्युनिकेशन और वर्चुअल रियलिटी में भी इसके प्रयोग की संभावनाएँ तलाशी जा रही हैं।
निष्कर्ष: ध्वनि का नया युग
टारगेटेड साउंड तकनीक न सिर्फ विज्ञान की उड़ान को दर्शाती है, बल्कि यह मानव समाज को अधिक व्यक्तिगत और सुरक्षित बनाने का वादा करती है। हालाँकि, इसके जोखिमों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। ऐसे में, वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को इसके उपयोग के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाने होंगे। एक बात तो तय है—यह तकनीक हमारे सुनने के तरीके को हमेशा के लिए बदल देगी!